बुधवार, 23 सितंबर 2015

गोदावरी तट शक्तिपीठ




गोदावरी तट शक्तिपीठ


51 शक्तिपीठों में से एक है। हिन्दू धर्म के पुराणों के अनुसार जहां-जहां सती के अंग के टुकड़े, धारण किए वस्त्र या आभूषण गिरे, वहां-वहां शक्तिपीठ अस्तित्व में आये। ये अत्यंत पावन तीर्थस्थान कहलाये। ये तीर्थ पूरे भारतीय उपमहाद्वीप पर फैले हुए हैं। देवीपुराण में 51 शक्तिपीठों का वर्णन है।
  • आंध्र प्रदेश में अनेक देवालय हैं, जिनमें शिव, विष्णु, गणेश तथा कार्तिकेय (सुब्रह्मण्यम) आदि की उपासना होती है तथा अनेक पीठ यहाँ पर हैं।
  • प्रसिद्ध 'गोदावरी तट शक्तिपीठ' आन्ध्र प्रदेश के 'कुब्बूर' में गोदावरी नदी के तट पर स्थित है।
  • माना जाता है कि यहाँ पर सती के "वामगण्ड" (बायाँ गाल) का निपात हुआ था।
  • इस शक्तिपीठ की सती 'विश्वेश्वरी' या 'रुक्मिणी' तथा शिव 'दण्डपाणि' हैं।


मंगलवार, 22 सितंबर 2015

किरीट शक्तिपीठ हावड़ा (पश्चिम बंगाल )




किरीट शक्तिपीठ
हावड़ा (पश्चिम बंगाल )


·       शिव की अद्र्धांगिनी माता सती अर्थात् मां पार्वती अपने दिव्य स्वरूपों में विभिन्न 51 स्थानों पर शक्तिरूप में विराजित हैं। शक्ति के इन तेजस्वी और जागृत स्थलों को शक्तिपीठ के तौर पर जाना जाता है। यही नहीं देवीपुराण में 51 शक्तिपीठों का वर्णन मिलता है। जिसमें पश्चिम बंगाल में हावड़ा स्टेशन से 2.5 किलोमीटर आगे लालबाग कोट स्टेशन है, हावड़ा वरहर लाईन पर और 5 किलोमीटर दूर बड़नगर में यहीं पर हुगली क्षेत्र है। पवित्र मां गंगा के तट पर स्थित है किरीट शक्तिपीठ । 

·       जी हां जैसा कि नाम से स्पष्ट है, यह स्थान मुकुट के लिए जाता जाता है। दरअसल जब माता सती ने अपने पिता दक्ष प्रजापति के यज्ञ को भंग कर स्वयं अपनी आहूति दे दी तब भगवान शंकर शोक में डूब गए और वे माता सती का शव यहां वहां लेकर घूमने लगे। ऐसे में सृष्टि चक्र प्रभावित होने लगा। शोक में डूबे शिव को सहज करने के लिए भगवान विष्णु ने अपने सुदर्शन चक्र से सती माता के विभिन्न अंगों को 51 टुकड़ों में बांट दिया। 

·        जिसके बाद माता सती के ये अंग विभिन्न भागों में विभक्त होकर धरती पर गिरे। जहां भी माता के अंग गिरे वहां - वहां दीव्य शक्ति जागृत हो गई। दूसरी ओर इन शक्ति स्थलों को शक्ति पीठ के तौर पर जाना गया। माता सती के इस स्थल को किरीट शक्तिपीठ कहा जाता है दरअसल यहां मां का मस्तक आया था। यह शक्ति का बेहद जागृत केंद्र है। माता को यहां 'विमला' अथवा 'भुवनेश्वरी'  माता कहा जाता है। यहां श्रद्धालुओं की मनोकामना पूरी होती है।



गुह्येश्वरी शक्तिपीठ काठमांडो – नेपाल




गुह्येश्वरी शक्तिपीठ
काठमांडो – नेपाल


  • नेपाल में पशुपतिनाथ मंदिर से थोड़ी दूर बागमती नदी की दूसरी ओर 'गुह्येश्वरी शक्तिपीठ' है।
  • यह नेपाल की अधिष्ठात्री देवी हैं। मंदिर में एक छिद्र से निरंतर जल बहता रहता है।
  • इस स्थान पर सती दोनों के दोनों "जानू" (घुटनों) का निपात हुआ था।[1]
  • इस शक्तिपीठ की शक्ति 'महामाया' और शिव 'कपाल' हैं।
  • यह शक्तिपीठ 'किरातेश्वर महादेव मंदिर' के समीप पशुपतिनाथ मंदिर से सुदूर पूर्व बागमती के दूसरी तरफ एक टीले पर विराजमान है।
  • जनश्रुति के अनुसार कभी यहाँ 'श्लेषमांत वन' था, जहाँ अर्जुन की तपस्या पर शिव किरात रूप में मिले थे। यह वन आज ग्राम बन गया है।
  • यहीं काठमाण्डु हवाई अड्डा भी है।
  • 'गुह्येश्वरी पीठ' के पास ही सिद्धेश्वर महादेव का मंदिर है, जहाँ ब्रह्मा ने शिवलिंग की स्थापना की थी।
  • इस शक्तिपीठ तक पहुँचने के लिए (वायु मार्ग से) काठमाण्डु हवाई अड्डे से गोशाला होते हुए टैक्सी/बस/टैम्पों से बागमती तट उतर कर पुल से दूसरी ओर जाया जा सकता है तथा सड़क मार्ग से काठमाण्डु बस अड्डे से रत्नपार्क शहीद फाटक होते हुए गोशाला तक पहँचते हैं।



गण्डकी शक्तिपीठ-नेपाल




गण्डकी शक्तिपीठ-नेपाल


  • नेपाल में गण्डकी नदी के उद्गम स्थल पर 'गण्डकी शक्तिपीठ' स्थित है।
  • इस शक्तिपीठ में सती के "दक्षिणगण्ड" (कपोल) का पतन हुआ था।
  • यहाँ सती 'गण्डकी' तथा शिव 'चक्रपाणि' हैं।
  • गण्डकी पीठ को मुक्तिदायिनी माना गया है।



रविवार, 20 सितंबर 2015

जय माॅ दुर्गा




माँ 



!! माँ दुर्गा चालीसा !!




!! माँ दुर्गा चालीसा !!


 II ॐ एं ह्रीं क्लीं चामुण्डायैः विच्चे II
दुर्गा माता भगवान शिव की पत्नी माता  पार्वती का एक रूप हैं। देवताओं की प्रार्थना पर महिसासुर रूपी राक्षसों का नाश करने के लिये पर माता पार्वती ने दुर्गा रूप धारण किया था। देवी दुर्गा के स्वयं कई रूप हैं । मुख्य रूप उनका गौरीहै, अर्थात शान्तमय, सुन्दर और गोरा रूप । उनका सबसे भयानक रूप काली है, अर्थात काला रूप ।

नौ दुर्गाओं के स्वरूप का वर्णन संक्षेप में ब्रह्मा जी ने इस प्रकार से किया है:--
प्रथमं शैलपुत्री च द्वितीयं ब्रहमचारिणी !
तृतीयं चन्द्रघण्टेति कूष्माण्डेति चतुर्थकम !
पंचमं स्क्न्दमातेति षष्ठं कात्यायनीति च !
सप्तमं कालरात्रीति महागौरीति चाष्टमम !
नवमं सिद्धिदात्री च नवदुर्गाः प्रकीर्तिताः।


नमो नमो दुर्गे सुख करनी। नमो नमो अंबे दुःख हरनी॥
निरंकार है ज्योति तुम्हारी। तिहूं लोक फैली उजियारी॥
शशि ललाट मुख महाविशाला। नेत्र लाल भृकुटि विकराला॥
रूप मातु को अधिक सुहावे। दरश करत जन अति सुख पावे॥

तुम संसार शक्ति लै कीना। पालन हेतु अन्न धन दीना॥
अन्नपूर्णा हुई जग पाला। तुम ही आदि सुन्दरी बाला॥
प्रलयकाल सब नाशन हारी। तुम गौरी शिवशंकर प्यारी॥
शिव योगी तुम्हरे गुण गावें। ब्रह्मा विष्णु तुम्हें नित ध्यावें॥

रूप सरस्वती को तुम धारा। दे सुबुद्धि ऋषि मुनिन उबारा॥
धरयो रूप नरसिंह को अम्बा। परगट भई फाड़कर खम्बा॥
रक्षा करि प्रह्लाद बचायो। हिरण्याक्ष को स्वर्ग पठायो॥
लक्ष्मी रूप धरो जग माहीं। श्री नारायण अंग समाहीं॥

क्षीरसिन्धु में करत विलासा। दयासिन्धु दीजै मन आसा॥
हिंगलाज में तुम्हीं भवानी। महिमा अमित न जात बखानी॥
मातंगी अरु धूमावति माता। भुवनेश्वरी बगला सुख दाता॥
श्री भैरव तारा जग तारिणी। छिन्न भाल भव दुःख निवारिणी॥

केहरि वाहन सोह भवानी। लांगुर वीर चलत अगवानी॥
कर में खप्पर खड्ग विराजै। जाको देख काल डर भाजै॥
सोहै अस्त्र और त्रिशूला। जाते उठत शत्रु हिय शूला॥
नगरकोट में तुम्हीं विराजत। तिहुँलोक में डंका बाजत॥

शुम्भ निशुम्भ दानव तुम मारे। रक्तन बीज शंखन संहारे॥
महिषासुर नृप अति अभिमानी। जेहि अघ भार मही अकुलानी॥
रूप कराल कालिका धारा। सेन सहित तुम तिहि संहारा॥
परी गाढ़ सन्तन पर जब जब। भई सहाय मातु तुम तब तब॥

आभा पुरी अरु बासव लोका। तब महिमा सब रहें अशोका॥
ज्वाला में है ज्योति तुम्हारी। तुम्हें सदा पूजें नर-नारी॥
प्रेम भक्ति से जो यश गावें। दुःख दारिद्र निकट नहिं आवें॥
ध्यावे तुम्हें जो नर मन लाई। जन्म-मरण ताकौ छुटि जाई॥

जोगी सुर मुनि कहत पुकारी। योग न हो बिन शक्ति तुम्हारी॥
शंकर आचारज तप कीनो। काम क्रोध जीति सब लीनो॥
निशिदिन ध्यान धरो शंकर को। काहु काल नहिं सुमिरो तुमको॥
शक्ति रूप का मरम न पायो। शक्ति गई तब मन पछितायो॥

शरणागत हुई कीर्ति बखानी। जय जय जय जगदम्ब भवानी॥
भई प्रसन्न आदि जगदम्बा। दई शक्ति नहिं कीन विलम्बा॥
मोको मातु कष्ट अति घेरो। तुम बिन कौन हरै दुःख मेरो॥
आशा तृष्णा निपट सतावें। रिपु मुरख मोही डरपावे॥ 

शत्रु नाश कीजै महारानी। सुमिरौं इकचित तुम्हें भवानी॥
करो कृपा हे मातु दयाला। ऋद्धि-सिद्धि दै करहु निहाला।
जब लगि जियऊं दया फल पाऊं। तुम्हरो यश मैं सदा सुनाऊं॥
श्री दुर्गा चालीसा जो कोई गावै। सब सुख भोग परमपद पावै॥

देवीदास शरण निज जानी। करहु कृपा जगदम्ब भवानी॥

॥ इति श्रीदुर्गा चालीसा सम्पूर्ण 


माँ दुर्गा की आरती



माँ दुर्गा की आरती
दुर्गा माता जी की आरती

जय अंबे गौरी, मैया जय श्यामा गौरी ।
तुमको निशदिन ध्यावत, हरि ब्रह्मा शिवरी ॥
ॐ जय अंबे गौरी

मांग सिंदूर विराजत, टीको मृगमद को ।
उज्ज्वल से दोउ नैना, चंद्रवदन नीको ॥
ॐ जय अंबे गौरी

कनक समान कलेवर, रक्तांबर राजै ।
रक्तपुष्प गल माला, कंठन पर साजै ॥
ॐ जय अंबे गौरी

केहरि वाहन राजत, खड्ग खप्पर धारी ।
सुर-नर-मुनिजन सेवत, तिनके दुखहारी ॥
ॐ जय अंबे गौरी

कानन कुण्डल शोभित, नासाग्रे मोती ।
कोटिक चंद्र दिवाकर, राजत सम ज्योती ॥
ॐ जय अंबे गौरी

शुंभ-निशुंभ बिदारे, महिषासुर घाती ।
धूम्र विलोचन नैना, निशदिन मदमाती ॥
ॐ जय अंबे गौरी

चण्ड-मुण्ड संहारे, शोणित बीज हरे ।
मधु-कैटभ दोउ मारे, सुर भयहीन करे
ॐ जय अंबे गौरी

ब्रह्माणी, रूद्राणी, तुम कमला रानी ।
आगम निगम बखानी, तुम शिव पटरानी ॥
ॐ जय अंबे गौरी

चौंसठ योगिनी मंगल गावत, नृत्य करत भैंरू ।
बाजत ताल मृदंगा, अरू बाजत डमरू ॥
ॐ जय अंबे गौरी

तुम ही जग की माता, तुम ही हो भरता ।
भक्तन की दुख हरता, सुख संपति करता ॥
ॐ जय अंबे गौरी

भुजा चार अति शोभित, वरमुद्रा धारी ।
मनवांछित फल पावत, सेवत नर नारी ॥

ॐ जय अंबे गौरी

कंचन थाल विराजत, अगर कपूर बाती ।
श्रीमालकेतु में राजत, कोटि रतन ज्योती ॥

ॐ जय अंबे गौरी

श्री अंबेजी की आरति, जो कोइ नर गावे ।
कहत शिवानंद स्वामी, सुख-संपति पावे ॥

ॐ जय अंबे गौरी


या देवी सर्वभुतेषु मातृरूपेण संस्थिता ।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः ॥


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