कात्यायनी पीठ, वृन्दावन
उत्तर प्रदेश के मथुरा नगर में
स्थित है। भारतीय संस्कृति जहाँ जो
कुछ उत्तम एवं शुभ है उसका संग्रह करने वाली है। 'सर्वेषाम् विरोधेन
ब्रह्मकर्म समार-भे' को वाणी प्रदान करने वाली है। संकुचित
भावना से दूर त्याग, संयम, वैराग्य,
सेवा, प्रेम, ज्ञान आदि
से सुरभित वातावरण में पली भारतीय संस्कृति समस्त संस्कृतियों का शृंगार है। भारत की
सांस्कृतिक चेतना मानवता के मंदिर की अखंड ज्योति सी निरंतर प्रज्वलित रही। जब भी
यह ज्योति मंद पड़ी एक नवीन ज्योति ने अपना शुभ स्नेह दान कर उसमें प्राण फूंके।
कितने वात्याचक्र आये और चले गये, किन्तु विश्व को शान्ति और
सदभाव का संदेश देती हुई वह मंगल ज्योति निरन्तर जलती आ रही है। इसी शृंखला के
अंतर्गत भगवती कात्यायनी द्वारा नियुक्त महान योगिराज श्री श्यामाचरण लाहिड़ी जी
महाराज के परम सुयोग्य शिष्य योगी जी 1008 श्रीयुत स्वामी
केशवानन्द ब्रह्मचारी जी महाराज ने अपनी कठोर साधना द्वारा भगवती के प्रत्यक्ष
आदेशानुसार इस लुप्त स्थान श्री कात्यायनी पीठ राधा बाग, वृन्दावन नामक
पावनतम पवित्र स्थान का उद्धार किया।
वृन्दावन में कात्यायनी
पीठ
अनन्त काल से भारतवर्ष यथार्थ में पवित्र स्थानों, तीर्थों,
सिद्धपीठों, मन्दिरों एवं देवालयों से
सुसज्जित एवं सुशोभित रहा है। जिस पावन पवित्र भूमि में गंगा, यमुना, सरस्वती आदि नदियों
एवं राम कृष्ण आदि आराध्य
देवों ने अवतार ग्रहण किया और अधर्म का नाश कर धर्म की रक्षा की, ऐसे सुन्दर पवित्रतम स्थानों को तीर्थ एवं सिद्धपीठ के नाम से पुकारा गया,
जिनमें भगवान नन्दनन्दन अशरणशरण, करुणावरुणालय,
ब्रजेन्द्र नन्दन श्री कृष्णचंद्र की पावन पुण्यमय क्रीड़ाभूमि श्रीधाम
वृन्दावन में
कालिन्दी गिरिनन्दनी सकल क्ल्मषहारिणी श्री यमुना के सन्निकट राधाबाग़ स्थित अति
प्राचीन सिद्धपीठ के रूप में श्री श्री मां कात्यायनी देवी विराजमान हैं।
पौराणिक मान्यता
भगवान श्री कृष्ण की क्रीड़ा भूमि श्रीधाम वृन्दावन
में भगवती देवी के केश गिरे थे, इसका प्रमाण प्राय: सभी
शास्त्रों में मिलता ही है। आर्यशास्त्र, ब्रह्म वैवर्त पुराण एवं आद्या स्तोत्र आदि कई स्थानों पर
उल्लेख है- व्रजे कात्यायनी परा अर्थात वृन्दावन स्थित पीठ में ब्रह्मशक्ति
महामाया श्री माता कात्यायनी के नाम से प्रसिद्ध है। वृन्दावन स्थित श्री कात्यायनी
पीठ भारतवर्ष के उन अज्ञात 108 एवं ज्ञात 51 पीठों में से एक अत्यन्त प्राचीन सिद्धपीठ है। देवर्षि श्री वेदव्यास जी ने श्रीमद् भागवत के दशम स्कंध के बाईसवें अध्याय में
उल्लेख किया है-
कात्यायनि महामाये महायोगिन्यधीश्वरि।
नन्दगोपसुतं देवि पतिं मे कुरु ते नम:॥
हे कात्यायनि! हे महामाये! हे महायोगिनि! हे अधीश्वरि! हे देवि! नन्द गोप के पुत्र को हमारा पति बनाओ हम आपका अर्चन एवं वन्दन करते हैं। दुर्गा सप्तशती में देवी के अवतरित होने का उल्लेख इस प्रकार मिलता है-
कात्यायनि महामाये महायोगिन्यधीश्वरि।
नन्दगोपसुतं देवि पतिं मे कुरु ते नम:॥
हे कात्यायनि! हे महामाये! हे महायोगिनि! हे अधीश्वरि! हे देवि! नन्द गोप के पुत्र को हमारा पति बनाओ हम आपका अर्चन एवं वन्दन करते हैं। दुर्गा सप्तशती में देवी के अवतरित होने का उल्लेख इस प्रकार मिलता है-
नन्दगोपगृहे जाता
यशोदागर्भसम्भवा। मैं नन्द गोप के घर में यशोदा के गर्भ से अवतार लूंगी। श्रीमद् भावगत में भगवती
कात्यायनी के पूजन द्वारा भगवान श्री कृष्ण को प्राप्त करने के साधन का सुन्दर
वर्णन प्राप्त होता है। यह व्रत पूरे मार्गशीर्ष (अगहन) के मास में होता है। भगवान
श्री कृष्ण को पाने की लालसा में ब्रजांगनाओं ने अपने हृदय की लालसा पूर्ण करने हेतु
यमुना नदी के किनारे से घिरे हुए राधाबाग़ नामक स्थान पर श्री कात्यायनी देवी का
पूजन किया। ऐसे महान सिद्धपीठ का उद्धार क्या कोई साधारण व्यक्ति कर सकता है?
जब तक उसे भगवती की कृपा प्राप्त ना हो जाये। भगवती द्वारा नियुक्त
पुत्र श्री केशवानन्द जी ने श्री कात्यायनी पीठ का पुनर्रुद्धार करने हेतु इस पृथ्वी पर जन्म लिया। कामरूप मठ के स्वामी रामानन्द तीर्थ जी
महाराज से दीक्षित होकर कठोर साधना के लिए हिमालय की कंदराओं में गमन किया। साधनान्तर सर्वशक्तिशाली मां
के आदेशानुसार वृन्दावन स्थित अज्ञात सिद्धपीठ का उन्होंने पुनरूध्दार कराया।
स्वामी केशवानन्द जी महाराज द्वारा 1 फ़रवरी, 1923 माघी पूर्णिमा के दिन बनारस, बंगाल तथा भारत के विभिन्न सुविख्यात प्रतिष्ठित वैदिक
याज्ञिक ब्राह्मणों द्वारा वैष्ण्वीय परम्परा से मंदिर की प्रतिष्ठा का कार्य
पूर्ण कराया। मां कात्यायनी के साथ-साथ पंचानन शिव, विष्णु, सूर्य तथा सिद्धिदाता श्री गणेश जी महाराज (जिनकी बात तो कुछ अलौकिक ही है "जिसने
जाना उसने पाया" वाली कहावत चरितार्थ है) की मूर्तियों की भी इस मंदिर में
प्रतिष्ठा की गई। राधाबाग़ मंदिर के अंतर्गत गुरु मंदिर, शंकराचार्य
मंदिर, शिव मंदिर तथा सरस्वती मंदिर भी दर्शनीय हैं। यहाँ की
अलौकिकता का मुख्य कारण जहां साक्षात मां कात्यायनी सर्वशक्तिस्वरूपणि, दु:खकष्टहारिणी, आल्हादमयी, करुणामयी
अपनी अलौकिकता को लिए विराजमान है वहीं पर सिद्धिदाता श्री गणेश जी एवं बगीचा में
अर्ध्दनारीश्वर (गौरीशंकर महादेव) एक प्राण दो देह को धारण किये हुए विराजमान हैं।
लोग उन्हें देखते ही मन्त्रमुग्ध हो जाते हैं।
शकराचार्य मंदिर में जहां विप्र वटुओं द्वारा वेद ध्वनि से सम्पूर्ण वेद विद्यालय एवं सम्पूर्ण कात्यायनी पीठ का प्रांगण पवित्र हो जाता है, वहीं कात्यायनी पीठ में स्थित औषधालय द्वारा विभिन्न असाध्य रोगियों का सफलतम उपचार तथा मंदिर में स्थित गौशाला में गायों की सेवा पूजा दर्शनीय है। इसके अतिरिक्त यज्ञशाला में वेदोक्तरीति से स्वाहाकार मन्त्रों का श्रवण एवं विभिन्न उपासना पध्दति द्वारा अर्चन को देखकर कोई व्यक्ति स्तम्भित होकर मां के समक्ष पहुंच जाता है और सम्पूर्ण संसार को ही वह पल भर के लिए भूल जाता है। यही मां कात्यायनी की कृपा शक्ति का फल है जो कई बार दर्शन करने के बाद भी उसकी लालसा और जाग्रत होती चली जाती है।
श्री स्वामी केशवानन्द ब्रह्मचारी जी महाराज ने हरिद्वार में चण्डी पर्वत के चरण पर चारों ओर से पतितपावनी कल्मषहारिणी पुनीत गंगा से घिरे हुए सुरम्य स्थान पर योग साधना हेतु एक आश्रम की स्थापना की, वहां का वातावरण अत्यन्त सुरम्य एवं मनोहारी है। चतुर्दिक वृक्षों एवं फलफूलों से आच्छादित्य उस दिव्य आश्रम की भूमि मानो मानव मात्र को अपनी ओर आकर्षित कर लेती है। ये तपोस्थली है जहां व्यक्ति एकाग्रचित्त होकर उस अलौकिक प्रेम को पाने के लिए लालायित हो उठता है। श्री श्री कात्यायनी पीठ वृन्दावन में समयोचित पूजा महोत्सव आदि अनवरत रूप से विधिपूर्वक होते रहते हैं।
शकराचार्य मंदिर में जहां विप्र वटुओं द्वारा वेद ध्वनि से सम्पूर्ण वेद विद्यालय एवं सम्पूर्ण कात्यायनी पीठ का प्रांगण पवित्र हो जाता है, वहीं कात्यायनी पीठ में स्थित औषधालय द्वारा विभिन्न असाध्य रोगियों का सफलतम उपचार तथा मंदिर में स्थित गौशाला में गायों की सेवा पूजा दर्शनीय है। इसके अतिरिक्त यज्ञशाला में वेदोक्तरीति से स्वाहाकार मन्त्रों का श्रवण एवं विभिन्न उपासना पध्दति द्वारा अर्चन को देखकर कोई व्यक्ति स्तम्भित होकर मां के समक्ष पहुंच जाता है और सम्पूर्ण संसार को ही वह पल भर के लिए भूल जाता है। यही मां कात्यायनी की कृपा शक्ति का फल है जो कई बार दर्शन करने के बाद भी उसकी लालसा और जाग्रत होती चली जाती है।
श्री स्वामी केशवानन्द ब्रह्मचारी जी महाराज ने हरिद्वार में चण्डी पर्वत के चरण पर चारों ओर से पतितपावनी कल्मषहारिणी पुनीत गंगा से घिरे हुए सुरम्य स्थान पर योग साधना हेतु एक आश्रम की स्थापना की, वहां का वातावरण अत्यन्त सुरम्य एवं मनोहारी है। चतुर्दिक वृक्षों एवं फलफूलों से आच्छादित्य उस दिव्य आश्रम की भूमि मानो मानव मात्र को अपनी ओर आकर्षित कर लेती है। ये तपोस्थली है जहां व्यक्ति एकाग्रचित्त होकर उस अलौकिक प्रेम को पाने के लिए लालायित हो उठता है। श्री श्री कात्यायनी पीठ वृन्दावन में समयोचित पूजा महोत्सव आदि अनवरत रूप से विधिपूर्वक होते रहते हैं।
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