ॐ एं
ह्रीं क्लीं चामुण्डायैः विच्चे॥
दुर्गा माता भगवान शिव
की पत्नी माता पार्वती का एक रूप हैं। देवताओं की प्रार्थना पर महिसासुर
रूपी राक्षसों का नाश करने के लिये पर माता पार्वती ने दुर्गा रूप धारण किया था।
देवी दुर्गा के स्वयं कई रूप हैं । मुख्य रूप उनका “गौरी” है,
अर्थात शान्तमय, सुन्दर और गोरा रूप । उनका
सबसे भयानक रूप काली है, अर्थात काला रूप ।
नौ दुर्गाओं के स्वरूप का वर्णन संक्षेप में ब्रह्मा जी ने इस प्रकार से किया है:
नौ दुर्गाओं के स्वरूप का वर्णन संक्षेप में ब्रह्मा जी ने इस प्रकार से किया है:
प्रथमं शैलपुत्री च
द्वितीयं ब्रहमचारिणी।
तृतीयं चन्द्रघण्टेति
कूष्माण्डेति चतुर्थकम।
पंचमं स्क्न्दमातेति
षष्ठं कात्यायनीति च।
सप्तमं कालरात्रीति
महागौरीति चाष्टमम।
नवमं सिद्धिदात्री च
नवदुर्गाः प्रकीर्तिताः।
माँ दुर्गा की आरती
जय
अंबे गौरी, मैया जय श्यामा गौरी ।
तुमको
निशदिन ध्यावत, हरि ब्रह्मा शिवरी ॥
ॐ जय
अंबे गौरी…
मांग
सिंदूर विराजत, टीको मृगमद को ।
उज्ज्वल
से दोउ नैना, चंद्रवदन नीको ॥
ॐ जय
अंबे गौरी…
कनक
समान कलेवर, रक्तांबर राजै ।
रक्तपुष्प
गल माला, कंठन
पर साजै ॥
ॐ जय
अंबे गौरी…
केहरि
वाहन राजत, खड्ग खप्पर धारी ।
सुर-नर-मुनिजन
सेवत, तिनके
दुखहारी ॥
ॐ जय
अंबे गौरी…
कानन
कुण्डल शोभित, नासाग्रे मोती ।
कोटिक
चंद्र दिवाकर, राजत सम ज्योती ॥
ॐ जय
अंबे गौरी…
शुंभ-निशुंभ
बिदारे, महिषासुर
घाती ।
धूम्र
विलोचन नैना, निशदिन मदमाती ॥
ॐ जय
अंबे गौरी…
चण्ड-मुण्ड
संहारे, शोणित
बीज हरे ।
मधु-कैटभ
दोउ मारे, सुर भयहीन करे ॥
ॐ जय
अंबे गौरी…
ब्रह्माणी, रूद्राणी, तुम
कमला रानी ।
आगम
निगम बखानी, तुम शिव पटरानी ॥
ॐ जय
अंबे गौरी…
चौंसठ
योगिनी मंगल गावत, नृत्य करत भैंरू ।
बाजत
ताल मृदंगा, अरू बाजत डमरू ॥
ॐ जय
अंबे गौरी…
तुम
ही जग की माता, तुम ही हो भरता ।
भक्तन
की दुख हरता, सुख संपति करता ॥
ॐ जय
अंबे गौरी…
भुजा
चार अति शोभित, वरमुद्रा धारी ।
मनवांछित
फल पावत, सेवत
नर नारी ॥
ॐ जय
अंबे गौरी…
कंचन
थाल विराजत, अगर कपूर बाती ।
श्रीमालकेतु
में राजत, कोटि रतन ज्योती ॥
ॐ जय
अंबे गौरी…
श्री
अंबेजी की आरति, जो कोइ नर गावे ।
कहत
शिवानंद स्वामी, सुख-संपति पावे ॥
ॐ जय
अंबे गौरी…
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