हरसिद्धि शक्तिपीठ
51 शक्तिपीठों में
से एक है। इस शक्तिपीठ की स्थिति को लेकर विद्वानों में मतभेद हैं। कुछ उज्जैन के निकट शिप्रा नदीके तट पर स्थित भैरवपर्वत को, तो कुछ गुजरात के गिरनार पर्वत के सन्निकट
भैरवपर्वत को वास्तविक शक्तिपीठ मानते हैं। अत: दोनों ही स्थानों पर शक्तिपीठ की
मान्यता है।
स्थिति
हिन्दू धर्म के पुराणों के अनुसार जहां-जहां सती के
अंग के टुकड़े, धारण किए वस्त्र या आभूषण गिरे, वहां-वहां
शक्तिपीठ अस्तित्व में आये। ये अत्यंत पावन तीर्थस्थान कहलाये। ये तीर्थ
पूरे भारतीय उपमहाद्वीप पर फैले हुए हैं। देवीपुराण में 51 शक्तिपीठों का
वर्णन है। भूत-भावनामहाकालेश्वर की क्रीड़ा-स्थली
'अवंतिका' (उज्जैन) पावन शिप्रा के दोनों तटों पर स्थित
है। यहीं पार्वती हरसिद्धि देवी का मंदिर शक्तिपीठ,
रुद्रसागर या रुद्र सरोवर नाम से तालाब के निकट है।
पौराणिक
उल्लेख
शिव पुराण की मान्यता के
अनुसार जब सती बिन
बुलाए अपने पिता के घर गईं और वहां पर दक्ष के द्वारा अपने पति का अपमान सहन
न कर सकने पर उन्होंने अपनी काया को अपने ही तेज से भस्म कर दिया। भगवान शंकर यह शोक सह नहीं पाए और उनका
तीसरा नेत्र खुल गया, जिससे चारों ओर प्रलय मच गई। भगवान
शंकर ने माता सती के पार्थिव शरीर को कंधे पर उठा लिया और जब शिव अपनी पत्नी सती
की जलती पार्थिव देह को दक्ष प्रजापति की यज्ञ वेदी से उठाकर ले जा रहे थे,
तब विष्णु ने सती के अंगों को अपने चक्र से 52 भागों
में बांट दिया। उज्जैन के इस स्थान पर सती की कोहनी का
पतन हुआ था। अतः यहाँ कोहनी की पूजा होती है। यहाँ की शक्ति ‘मंगल चण्डिका’ तथा भैरव ‘मांगल्य
कपिलांबर’ हैं !
उज्जयिन्यां कूर्परं व
मांगल्य कपिलाम्बरः।
भैरवः सिद्धिदः साक्षात् देवी मंगल चण्डिका।
भैरवः सिद्धिदः साक्षात् देवी मंगल चण्डिका।
तीर्थस्थल
कहते हैं कि प्राचीन
मंदिर रुद्र सरोवर के तट पर स्थित था तथा सरोवर सदैव कमलपुष्पों से
परिपूर्ण रहता था। इसके पश्चिमी तट पर 'देवी हरसिद्धि'
का तथा पूर्वी तट पर 'महाकालेश्वर' का
मंदिर था। 18वीं शताब्दी में इन मंदिरों का पुनर्निर्माण
हुआ। वर्तमान हरसिद्धि मंदिर चहार दीवारी से घिरा है।
देवी
प्रतिमा
मंदिर के मुख्य पीठ पर
प्रतिमा के स्थान पर 'श्रीयंत्र' है। इस पर
सिंदूर चढ़ाया जाता है, अन्य प्रतिमाओं पर नहीं और उसके पीछे
भगवतीअन्नपूर्णा की प्रतिमा है।
गर्भगृह में हरसिद्धि देवी की प्रतिमा की पूजा होती है। मंदिर में महालक्ष्मी, महाकाली, महासरस्वती की प्रतिमाएँ
हैं। मंदिर के पूर्वी द्वार पर बावड़ी है, जिसके बीच में एक
स्तंभ है, जिस पर संवत 1447 अंकित है तथा पास ही में
सप्तसागर सरोवर है। मंदिर के जगमोहन के सामने दो बड़े दीप स्तंभ हैं।
श्रीयंत्र
की पूजा
शिवपुराण के अनुसार यहाँ
श्रीयंत्र की पूजा होती है। इन्हें विक्रमादित्य की आराध्या माना
जाता है। स्कंद पुराण[2] में
देवी हरसिद्धि का उल्लेख है। मंदिर परिसर में आदिशक्ति महामाया का भी मंदिर है,
जहाँ सदैव ज्योति प्रज्जवलित होती रहती है तथा दोनों नवरात्रों में यहाँ उनकी
महापूजा होती है-
नवम्यां पूजिता देवी
हरसिद्धि हरप्रिया
दीप
स्तंभ
मंदिर की सीढ़ियाँ
चढ़ते ही वाहन सिंह की प्रतिमा है। द्वार के दाईं ओर दो बड़े नगाड़े रखे हैं, जो
प्रातः सायं आरती के समय बजाए जाते हैं। मंदिर के सामने दो बड़े दीप स्तंभ हैं।
इनमें से एक 'शिव' है, जिसमें 501 दीपमालाएँ हैं, दूसरा
'पार्वती' है, जिसमें
500 दीपमालाएँ हैं तथा दोनों दीप स्तंभों पर दीपक जलाए जाते हैं। कुल मिलाकर इन 1001
दीपकों को जलाने में एक समय में तीन टिन रिफाइंड तेल यानी की कुल 45
लीटर तेल लग जाता है और सब मिलाकर इस काम पर एक समय का खर्च 7000 रुपये का है, जिसमें
लेबर भी शामिल रहती है। यह सब कुछ दानी सज्जनों द्वारा प्रायोजित होता है। लोग
पहले से ही इसकी बुकिंग करवा देते हैं।
विशेष
तथ्य
प्रसंगवश हरसिद्धि देवी
का एक मंदिर द्वारका (सौराष्ट्र) में भी है। दोनों
स्थानों (उज्जयिनी तथा द्वारका) पर देवी की मूर्तियाँ एक जैसी हैं। इंदौर से 80 किलोमीटर
दूर पुणे मार्ग पर स्थित उज्जैन प्राचीन काल से ही
तीर्थस्थल रहा है। यहाँ का महाकालेश्वर मंदिर (ज्योतिर्लिंग) तथा
बड़ा गणेश मंदिर, चिंतामणि गणेश मंदिर आदि दर्शनीय हैं।
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