कांची
शक्तिपीठ - कांचीपुरम - तमिलनाडु
मां कामाक्षी देवी
मंदिर जिसे हम कांची शक्तिपीठ भी कहते हैं, भारत
के 51 शक्तिपीठों में से एक है। पुराणों के अनुसार जहां-जहां
सती के अंग के टुकड़े, धारण किए वस्त्र या आभूषण गिरे,
वहां-वहां शक्तिपीठ बनाए गए। ये तीर्थ पूरे भारतीय उपमहाद्वीप पर
फैले हुए हैं। देवीपुराण में 51 शक्तिपीठों का वर्णन मिलता
है।
यह शक्तिपीठ तमिलनाडु राज्य
के कांचीपुरम नगर में स्थित है। यहां देवी की अस्थियां या कंकाल गिरा था। जहां पर
मां कामाक्षी देवी का भव्य विशाल मंदिर है, जिसमें त्रिपुर सुंदरी की प्रतिमूर्ति कामाक्षी देवी
की प्रतिमा है। यह दक्षिण भारत का सर्वप्रधान शक्तिपीठ है।
ऐकाम्रेश्वर शिवमंदिर से
लगभग चौथाई किलोमीटर की दूरी पर है मां कामाक्षी देवी का भव्य मंदिर। इसमें भगवती
पार्वती का श्रीविग्रह है, जिसको कामाक्षीदेवी अथवा कामकोटि भी कहते हैं। भारत के
द्वादश प्रधान देवी-विग्रहों में से यह मंदिर एक है। इस मंदिर के पार्श्व में
अन्नपूर्णा देवी और शारदादेवी मंदिर हैं।
1. शिवकाँची
2. विष्णुकाँची
3. जैनकाँची
ये तीनों अलग नहीं हैं। शिवकाँची नगर का बड़ा भाग है, जो स्टेशन से लगभग-2 किलोमीटर है।
पौराणिक मान्यताएँ
कामाक्षी देवी को 'कामकोटि' भी कहा जाता है तथा मान्यता है कि यह मंदिर शंकराचार्य द्वारा निर्मित है। देवी कामाक्षी के नेत्र इतने कमनीय या सुंदर
हैं कि
उन्हें कामाक्षी संज्ञा
दी गई। वस्तुतः कामाक्षी में मात्र कमनीय या काम्यता ही नहीं, वरन कुछ बीजाक्षरों का
यांत्रिक महत्त्व भी है। 'क' कार ब्रह्मा का, 'अ' कार विष्णु का, 'म' कार महेश्वर का वाचक है। इसीलिए
कामाक्षी के तीन नेत्र त्रिदेवों के प्रतिरूप हैं। सूर्य-चंद्र उनके प्रधान नेत्र हैं, अग्नि उनके भाल पर चिन्मय
ज्योति से प्रज्ज्वलित तृतीय नेत्र है। कामाक्षी में एक और सामंजस्य है 'का' सरस्वती का। 'माँ' महालक्ष्मी का द्योतक है। इस प्रकार कामाक्षी के नाम में सरस्वती तथा लक्ष्मी
का युगल-भाव समाहित है। शंकराचार्य ने-
सुधा सिन्धोर्मध्ये सुर
विरटिवाटी परिवृत्तं मणिद्वीपे नीपोपपवनवति चिंतामणि गृहे। शिवाकारे मंचे पर्यंक निलयां भजंति त्वां धन्याः
कतिचन
चिदानंद लहराम्॥
कहते हुए उन्हें सुधा सागर के बीच पारिजात वन में मणिद्वीप वासिनी
शिवाकार शैय्या पर परम शिव के साथ परमानंद की
अनुभूति करने वाली कहा है।
प्रतिमाएँ
कामाक्षी देवी त्रिपुर सुंदरी की प्रतिमूर्ति हैं। एकाम्रेश्वर मंदिर
के गर्भगृह में कामाक्षी की सुंदर प्रतिमा है। परिसर में ही अन्नपूर्णा तथा शारदा के भी मंदिर हैं।
एक स्थान पर शंकराचार्य की भी मूर्ति है। मंदिर के द्वार पर कामकोटि यंत्र में 'आद्यालक्ष्मी', 'विशालाक्षी', 'संतानलक्ष्मी', 'सौभाग्यलक्ष्मी', 'धनलक्ष्मी', 'वीर्यलक्ष्मी', 'विजयलक्ष्मी', 'धान्यलक्ष्मी' का न्यास किया गया है तथा परिसर में एक सरोवर है। मंदिर के द्वार पर
श्री रूपलक्ष्मी सहित चोर महाविष्णु तथा मंदिर के अधिदेवता श्री महाशास्ता
के विग्रह हैं,
जिनकी संख्या 100 के लगभग है। मंदिर का मुख्य विमान
स्वर्णपत्रों से जड़ा हुआ है।
दर्शनीय स्थल
वामन मंदिरः कामाक्षी देवी के भव्य मंदिर के पूर्व-दक्षिण की ओर यह मंदिर है
जिसमें भगवान वामन की लगभग पांच मीटर ऊंची मूर्ति है। भगवान का एक चरण ऊपर उठा हुआ
है। एवं दूसरे चरण के नीचे राज बलि का मस्तक है। मंदिर के पुजारी एक बांस में बहुत
मोटी बत्ती (मशाल) जलाकर भगवान के श्रीमुख का दर्शन कराते हैं। इसी के निकट
सुब्रह्मण्य मंदिर है। जिसमें स्वामिकार्तिक की बड़ी भव्य मूर्ति प्रतिष्ठित है।
कैलाशनाथ मंदिरः बस स्टैंड से लगभग दो किलोमीटर एवं
एकाम्रेश्वर शिवमंदिर से लगभग एक किलोमीटर की दूरी पर यह प्रचीन शिवमंदिर है। जो
बस्ती के अंतिम छोर पर स्थित है। इस मंदिर का शिवलिंग अति सुंदर एवं प्रभावोत्पादक
है। चारों ओर की भित्तियां पर नाना प्रकार की मूर्तियां उत्कीर्ण हैं, जिनकी शिल्पकला देखने योग्य है।
श्री वैकुंठपेरुमलः यह मंदिर बस स्टैंड से एक किलोमीटर की दूरी पर एवं बस्ती के मध्य
में स्थित है। इस मंदिर में भगवान विष्णु का श्री विग्रह है। मंदिर की शिल्पकला
उत्तम है। परिक्रमा मार्ग की भित्तियों पर विविध प्रकार की कलात्मक मूर्तियां
उत्कीर्ण हैं जिनमें श्रंगार, युद्ध और नृत्य गान की मूर्तियां विशेष आकर्षण
हैं।
कहते हैं यह मंदिर
शंकराचार्य द्वारा निर्मित है। देवी कामाक्षी के नेत्र इतने कमनीय या सुंदर हैं कि
उन्हें कामाक्षी संज्ञा दी गई। यहां मां कामाक्षी के बीजाक्षरों का यांत्रिक
महत्त्व बताया गया है। जैसे 'क' कार ब्रह्मा का, 'अ' कार विष्णु का, 'म' कार महेश्वर का वाचक है।
इसीलिए कामाक्षी के तीन
नेत्र त्रिदेवों के प्रतिरूप हैं। सूर्य-चंद्र उनके प्रधान नेत्र हैं, अग्नि
उनके भाल पर चिन्मय ज्योति से प्रज्ज्वलित तृतीय नेत्र है। कामाक्षी में एक और
सामंजस्य है 'का' सरस्वती का। 'मां' महालक्ष्मी का द्योतक है।
एकाम्रेश्वर मंदिर जहां
गर्भगृह में कामाक्षी की सुंदर प्रतिमा है। परिसर में ही अन्नपूर्णा तथा शारदा के
भी मंदिर हैं। एक स्थान पर शंकराचार्य की भी मूर्ति है। मंदिर के द्वार पर कामकोटि
यंत्र में 'आद्यालक्ष्मी', 'विशालाक्षी', 'संतानलक्ष्मी', 'सौभाग्यलक्ष्मी', 'धनलक्ष्मी', 'वीर्यलक्ष्मी', 'विजयलक्ष्मी',
'धान्यलक्ष्मी' नाम बताया गया है, मंदिर परिसर में एक सरोवर है।
मंदिर के द्वार पर श्री
रूपलक्ष्मी सहित चोर महाविष्णु तथा मंदिर के अधिदेवता श्री महाशास्ता के विग्रह
हैं, जिनकी
संख्या 100 के लगभग है। मंदिर का मुख्य विमान स्वर्णपत्रों
से जड़ा हुआ है।
बहुत सुन्दर व सार्थक लेख | साधुवाद !
जवाब देंहटाएंNice,Thanks
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